
🟢 भारत में कोयला ऊर्जा संकट और जल संकट की चुनौती
भारत एक विकासशील देश है जहाँ ऊर्जा की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इस मांग को पूरा करने के लिए कोयला अब भी मुख्य स्रोत बना हुआ है। लेकिन कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन से न केवल वायु प्रदूषण बढ़ता है, बल्कि पानी की खपत भी अत्यधिक होती है। यही कारण है कि अब भारत में कोयला ऊर्जा संकट के साथ-साथ जल समस्या भी उत्पन्न हो रही है।

🔵 कोयला ऊर्जा पर भारत की निर्भरता
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश भारत है और थर्मल पावर प्लांट्स से देश की लगभग 55% बिजली प्राप्त होती है। इस कार्य में कोयले को जलाकर भाप बनाई जाती है, जिससे टरबाइन चलती है और बिजली उत्पन्न होती है। लेकिन इस प्रक्रिया में लाखों लीटर पानी हर दिन इस्तेमाल होता है।
❗ आंकड़े:
किसी एक थर्मल पावर प्लांट में 1 मेगावॉट बिजली बनाने के लिए भी 2,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
अकेले महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में जल स्रोतों पर भारी दबाव पड़ा है।

🔵 जल संकट: एक छिपी हुई आपदा
कोयले की प्रक्रिया के लिए पानी की आवश्यकता होती है, जिससे नदियों और जलाशयों का पानी घटता जा रहा है। इस वजह से किसानों को खेती करने के लिए पानी नहीं मिल पाता,और पीने के पानी के लिए भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
👨🌾 ग्रामीण क्षेत्रों में असर:
किसान समय पर फसल नहीं बो पा रहे हैं।
टैंकरों पर निर्भरता बढ़ गई है।
कई गाँवों में गर्मियों में जल संकट विकराल रूप लेता है।
🔵 सरकार की नीति और पर्यावरणीय चिंता
भारत सरकार ने कोयला उत्पादन और उसके आयात को बढ़ावा देने के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं, लेकिन जल संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
📜 नीति के कुछ मुख्य बिंदु:
नए थर्मल पावर प्लांट्स को मंज़ूरी
कोयला खदानों का विस्तार
जल उपयोग पर कोई सख्त नियंत्रण नहीं
🔵 इस संकट का समाधान क्या हो सकता है?
✅ समाधान:
रिन्युएबल एनर्जी (सौर, पवन) को प्राथमिकता देना
थर्मल प्लांट्स में वाटर-रेसाइकल तकनीक अपनाना
कोयला उत्पादन में जल उपयोग की मॉनिटरिंग
सार्वजनिक जागरूकता अभियान
🌱 वैकल्पिक उपाय:
Rooftop solar systems
Decentralized power grids
जल-मित्र प्लांट टेक्नोलॉजी
🔴 निष्कर्ष
भारत में कोयले की बढ़ती मांग ने ऊर्जा उत्पादन को तो बढ़ाया है, लेकिन इसके साथ जल संकट एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है।अगर सही समय पर ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में यह समस्या संकट का रूप ले सकती है।
इसलिए, अब हमें ऊर्जा और जल की बचत करनी होगी, और हरित ऊर्जा विकल्पों को अपनाना होगा।